अनदेखा पहले भी करते थे,
अनदेखा आज भी करते हो।
कभी काम के बहाने से तो,
कभी नाम के बहाने से,
दूरियां आज भी रखते हो।।
नहीं की थी मतलब से दोस्ती,
बस इंसान पसंद आया था।
आपकी बातों में कुछ तो था,
जो इस दिल को भाया था।।
क्या पता था औरों की तरह,
तुम भी झूठ को फेंकते हो।
झूठा इश्क दिखाकर के,
तुम भी दिलों से खेलते हो।।
थी मुझमें ही कुछ तो कमी,
जो विश्वास इतना कर बैठे।
ये दुनियां झूठी और फरेबी है,
ये बात हम समझे नहीं कैसे।।
सब अपने स्वार्थों से जुड़ते,
कोई किसी को नहीं चाहता।
बातों से अपनी वो बहलाकर,
बस फायदा उठाना ही चाहता।।
हम क्यों है इतने भोले भाले,
जो सभी की बातें सच मानते।
दिल में नहीं हमारे छल कपट,
इस लिए जिंदगी में मात खाते।।
इस बड़ी सी दुनियां में,
झूठों का ही बोलबाला है।
सीधे और सच्चे लोगों का,
कोई नहीं साथ देने वाला है।।
अपनी कमजोरी बताकर के,
नहीं किसी से मदद है मांगना।
अपने आपको मजबूत करके,
पैरों को अब स्वयं है साधना।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री