विषय - यादें और चुप्पियाँ
दिनांक- 08/01/2023
बचपन की मासूम शरारतें,
हर समय ही याद आतीं हैं।
बड़े और समझदार होने पर,
मन को गदगद कर जाती हैं।।
वो नटखट अठखेलियां करना,
बचपन में सभी को भाता था।
सही गलत के भान न होने पर,
मासूम समझ छोड़ दिया जाता था।।
बचपन में दोस्तों संग खेल खेलना,
मन को बड़ा ही हर्षाता था।
खेल खेल में लड़ाई होने पर,
थोड़ी देर में ही भुला दिया जाता था।।
आज बड़े और समझदार होने पर,
बचपन बड़ा ही याद आता है।
बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए,
मन बचपन में जाना चाहता है।।
बदलते वक्त और दुनियांदारी ने,
जिम्मेदारी की चादर उढ़ा दी है।
अपनी ख्वाहिशों को दबाकर के,
मुंह पर चुप्पियों की मोहर लगा दी है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री