क्या फर्क पड़ता है मेरे हँसने या रोने से |
क्या फर्क पड़ता है मेरे होने , न होने से |
है कौन भला यहाँ अपना ,
अपने पन का झूठा खेल ही तो था |
परिवर्तन के राह
पर चलते हुए ,
तनिक भी न सोचा
बदलते हुए |
है कोई तो हिसाब
रखता होगा ? सबकी किताब रखता होगा ?
माना समझ न थी मुझमे कभी , हो जायेगा दूर मुझसे सोचा नही | था मेरा ही हिस्सा यही मानकर ,
न है मुझसे अलग यही जानकर |
रही बेखबर ,
न थी मुझको खबर |
आयेगा यह दिन , ऐसे ,
इस कदर |
है शिकायत न थी खुशी से कोई |
मुस्कुराते हुए तूने शुरुआत की |
भूलने मे लगा क्षण एक नही ,
मन भावना की यह तौहीन थी |
-Ruchi Dixit