क्या मिला, क्या खो गया................................
समय नहीं है किसी के पास दो पल रूक ऐ सोचने का,
पहले क्या था हमारे पास और अब क्या हासिल हुआ,
बटोरने में लगे है सब कुछ गैर ज़रूरी सामान भी,
ज्योतिष बन सोच रहे है कि क्या पता ज़रूरत पड़ जाए कभी,
आश्रचर्य नहीं होता, हैरत होती है,
बदलाव को देख कभी - कभी दहशत सी होती............................
पहले - पहल सब कुछ सच्चा होता था,
चेहरे पर आता हर भाव सबको मालूम होता था,
अब तो झूठी हंसी हंसते है और हक़िकत में चौंक जाते है,
कहीं पकड़ी तो नहीं गई हमारी गलती इस बात से घबरा जाते है,
पहले सरल थे तो सबको नाटक लगता था,
जब डटील हुए तो सबको सच्चा लगने लगा........................
पहले खुद के हिसाब से, खुद के लिए जीते थे,
अब औरों को देख उनकी तरह जीते है,
शामिल होना चाहते है उनमें जो हमसे अलग है,
क्या करें हम जैसा कोई बचा नहीं,
तो अब हम क्यों ना बदलें..................................