स्त्री से बढ़कर नहीं कोई नाटककार
जिंदगी रूपी नाटक में पूरी शिद्दत से
निभाती है वह अपना हर किरदार।
आंखों के आंसुओं को चतुराई से पी लेती है
हर दर्द को अपनी मुस्कान के पीछे छुपा लेती है
खुद भूखे पेट रहकर सबको भरपेट खिला देती है
अपनी व्यथा नहीं कभी किसी से कहती है
रिश्तों को बचाने के लिए अपनी खुशियां तज देती है
नहीं आती उनके हिस्से तालियों की गड़गड़ाहट
फिर भी ये स्त्रियां जिंदगी रूपी नाटक में
अपने हर किरदार को ताउम्र पूरी शिद्दत से जीती हैं।।
-Saroj Prajapati