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सोने खालिस होने की चाहत मे आग की तपिश से हो गुजरता है
हीरे अपने आप को तराशने की चाहत कटता रहता है
सुनहरी शाम को पाने की चाहत में धूप में जलना पड़ता हैं
कांटो का दामन थाम मुकम्मल आफताब मिलता है।
सीप को पाने की चाहत में, सागर की गहराइयों मे उतरना पड़ता है
अपने जिगर को मजबूत बना , जिंदगी के उतार-चढ़ाव से उतरना पड़ता है
फलक को छूने की चाहत मे नयी ऊंचाइयों पर चढ़ना होता है
है अगर कुछ पाने का जुनून , तो संघर्ष हर राह पर करना होता है
जन्नत में रहने वालों भी शोलो से गुजारना पड़ता हैं
मूर्ख हैं वो जो इन कांटों से डरते हैं
चांद की बराबरी करने की चाहत में जुगनू भी रात भर चलते हैं
कतरा कतरा लहू बहा, कांटो का दामन थाम फूल खिलते हैं
महबूब बना अपनी मुश्किलों को गुल खिलते हैं ।।
Deepti