जब अपनी असली पहचान के साथ थे
तब कहा गया ये क्या बचपना है
जब खुद को उनके हिसाब से ढाल लिया
तब कहते हैं तुम बदल से गए हो
पूरी ज़िन्दगी खुद को हर रंग में ढालते रहे
और अंत में दिल से एक आवाज़ आई
हम वास्तव में क्या थे और क्या हो गए
हर मुकम्मल कोशिश के बावजूद
ताउम्र अधूरे ही रह गए
-अनुभूति अनिता पाठक