विषय:-" फिर करे क्यों गुमान हम।"
धरा तुम, गगन तुम,
जल तुम ,अगन तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
सूरज तुम, चांद तुम,
प्रकाश तुम, शीतलता तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
अतल तुम ,वितल तुम,
पाताल तुम, भूतल तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
सरल तुम ,गहन तुम,
अटल तुम, पटल तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
आदि तुम ,अंत तुम,
मध्य भी तुम, अनंत तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
बीज तुम , वृक्ष तुम,
बादल तुम, बीज भी तुम
घन घोर घटा भी तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
बूंद भी तुम, समंदर तुम,
जीवन में उठती हर लहर तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
पुष्प तुम , फल तुम,
जीव जगत का सक्ल तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
सर्जन तुम, विसर्जन तुम,
कण-कण में व्याप्त तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
जन्म तुम ,मृत्यु तुम,
नवजीवन बक्षनार भी तुम,
सृष्टि के सर्जनहार तुम,
सब के पालनहार तुम,
सब के संहार कार भी तुम,
फिर करे क्यों गुमान हम।
।। स्वरचित डॉ दमयंती भट्ट।।
(21/05/2022/ /12:44 )