जो खुद में स्थिर रहते हैं .............
वही इस जीवन में प्रसन्नचित्त रहते हैं ,
औरों पर कभी उठाते नहीं वे उँगलियाँ ,
प्रयत्नरत खोजते हैं खुद की ही कमियाँ ।
समय नहीं गँवाते किसी में नुक़्स निकालने में ,
अनवरत लगे रहते हैं अपना अक्स निखारने में ।
स्थितप्रज्ञ बनकर वे जगत में अपना यश फैलाते हैं ,
महापुरुष कहलाते जो उनके पदचिह्नो पर चलते हैं ।