मजदूरी के नाम पर जिसका शोषण किया जाता है।
जिसके दम पर अपने घरों को रौशन किया जाता है।
जिसे दो वक़्त की रोटी के बदले मिलती हो गालियाँ।
जिसकी बेबसी और लाचारी पर लोग बजाते हैं तालियाँ।
कभी रिक्शा कभी ठेला कभी फुटपाथ पर मिल जाता है।
कभी हाथ मे झाड़ू कभी नालियों का कीचड़ उठाता है।
जिसकी परछाईं मात्र से इंसान अपवित्र हो जाता है।
1 एक मई को उसे मुबारक बाद दिया जाता है।
-arjun allahabadi