तितलियों सा चंचल मन था मेरा...
नदी के प्रवाह जैसा निरंतर बहने वाला ।
पर अब लगता है बदल गई हूं मैं तेरे जाने के बाद
लगता है जैसे कि कहीं रुक सी गई हूं पर्वत की तरह
कौन सा दिन है त्योहार है कुछ भी नहीं याद रहता पता नहीं रहता
पहले तो मैं कई दिन पहले से ही किसी भी त्योहार या किसी के जन्मदिन की तैयारियों में लग जाती थी... बिंदु.
अब ऐसा हाल नहीं है मेरा ।
पहले थी बुलबुल सी चुलबुल...
लगता था दिन-ब-दिन छोटे बच्चों से होते जा रही हूं मैं
पर तेरे जाने के बाद लगता है कि कोई वृद्ध सी विचारशील हो गई हूं मैं ... पर तेरे जाने के बाद...
पहले में गिलहरी की तरह उछल कूद किया करती थी
लेकिन अब धीर गंभीर सी हो गई हूं मैं
पहले में हंसती खेलती गुनगुनाती नन्ही बच्चियों की तरह
और अब मैं एक स्त्री की तरह जिम्मेदार बन गई हूं
तेरे जाने के बाद... तेरे जाने के बाद कितना बदल गई हूं मैं।
15/02/22
-Bindu _Anurag