#mahashivratri
अध चांद मुकुट गंगा धारी, नहीं मांगे दूध की धारा
जल भी अर्पित कर दो सनेह से उसे लागे गैया के दूध की धारा
बेलपत्र पुष्पक ना हो तो , अर्पित कर दो लिंग पे चढ़ाया पुष्प पुराना
चरणों पे गिर के महेश्वर के , हो जाए सब शुद्ध सारा
विश्व में सर्वप्रिय , फिर भी पुकारे स्वयं को राम सेवक न्यारा
शिव मूरत हर कन्या पूजे , परंतु उन्हें लागे प्रिय उमा का सहारा
क्षण भर का क्रोधी , पहने स्वर्ण नहीं पहने मुंडो की माला ,
भोला इतना है ये बैरागी, अपने भक्तों पे न्योछावर कर दे स्वर्ग की छाया
अधिपति विश्व का , परंतु कंठ पे ले बैठा है ,विश्व का विश सारा
महलों में ना निवास कर, रहे कैलाश की छाया
और क्या गुणगान करूं अपने शिव की महिमा की
मुझे ना लागे और कोई प्यारा ,
प्यासा है ये भक्त उसकी छत्रछाया के लिए
कि कभी आशुतोष भोले महादेव की छाया
Deepti