"मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे तो फ़िर मेरी चाल देख ले"
दिलीप कुमार शुरू से ही बहुत शर्मीले और संकोची स्वभाव के थे। वो जब फ़िल्मों में आए थे तब वो डांस बिल्कुल भी नहीं जानते थे।
वैसे भी उस ज़माने में लड़कों के डांस करने का प्रचलन नहीं था। इसे पूरी तरह लड़कियों का ही काम माना जाता था। कभी- कभी अगर कुछ युवकों को नाचते थिरकते हुए देखा भी जाता था तो उन्हें किसी अलग दुनिया का वाशिंदा ही समझा जाता था। उन दिनों फ़िल्मों में पुरुषों को स्टंट और बहादुरी के करतब करते हुए दिखाया जाता था और स्त्रियों को नृत्य और गीत के साथ।
लेकिन धीरे- धीरे फ़िल्मों में लड़कों के डांस करने का चलन भी आया।
इस दौर का सिरमौर शम्मी कपूर और जितेंद्र जैसे सितारों को समझा जाता था जिन्होंने अपनी फ़िल्मों में जंपिंग जैक की इमेज बनाई। आरंभ में लड़कों के डांस करने को भी उनकी उछल कूद ही कहा जाता था।
छठे दशक के अंतिम दौर में दिलीप कुमार और वैजयंती माला की एक जबरदस्त हिट फ़िल्म प्रदर्शित हुई- "गंगा जमना"!
साहूकार की ज़्यादती और किसान के शोषण पर आधारित ग्रामीण पृष्ठभूमि के इस कथानक में एक बेहद रोचक और कर्णप्रिय नृत्यगीत भी था जिसमें परिवेश की आंचलिकता की गंध रची- बसी थी। पहले यह सोचा गया कि ये गीत कुछ सहायक कलाकार ग्रामीण युवकों पर उनके लोकनृत्य के रूप में फिल्माया जाएगा और इसे देखने वाले दर्शक की तरह दिलीप कुमार रहेंगे। किंतु जब इस गीत का रिहर्सल हो रहा था तब कुछ मस्ती के मूड में दिलीप कुमार भी खड़े हो गए और कुछ मौलिक स्टेप्स करके सह कलाकारों को दिखाने लगे। निर्देशक और अन्य देखने वाले दर्शकों को भोले- भाले दिलीप की ये भंगिमा इतनी चित्ताकर्षक लगी कि इस पूरे नृत्य गीत का प्लान बदल कर इसे दिलीप कुमार पर ही पिक्चराइज करने का निश्चय किया गया।
बाद में ये गीत इतना पॉपुलर हो गया कि फ़िल्मों में नायकों के डांस डालने का चलन ही ज़ोर पकड़ने लगा। इस गीत में दिलीप ने सबको इतना लुभाया कि बाद में इसकी कुछ भंगिमाएं अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और ऋतिक रोशन जैसे नायक भी अपनी फ़िल्मों में दोहराते देखे गए।
...और उस गीत को तो सिनेप्रेमी आज तक नहीं भूले- "नैन लड़ जई हैं तो मनवा में कसक होइबे करी...!