Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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न महावीर है, न बुद्ध है
कहा मानवता का वजूद ढूंढूं
कहा करुणा का भाव देखूं ,
कहा अहिंसा का पाठ पढूं

यहा इंसान के बदलते व्यवहारों में
मैं अकेला, निसहाय , नि: शब्द हूं

कभी धरा का सुंदर प्राणी था में
आज कल भीड़ का शिकार बन चुका हूँ !

महत्वाकांक्षी, स्वार्थी के साथ चलकर
अच्छा व्यवहार भी ठुकराने लगा हूँ !
बुरा व्यवहार सहज अपनाकर ,

मैं क्या से क्या हो गया हूँ ?
निष्ठुर, निर्दयी बीच रहकर ,
पाषाण हृदय के साथ टकराकर

अंदर ही अंदर , चिल्लाता-रोता-तड़पता रहा
इंसान की अकल्पनीय करतूतें देखकर ,
सोच सोचकर, क्षण-क्षण मरने लगा हूँ ।

मैं असमर्थ, असहाय होकर
दूसरों के प्रवाह में बहने लगा हूँ !
मेरे बस में कुछ भी नहीं रहा
मेरी अच्छाइयां भी नफ़रत में जलने लगी हैं ।।


-© शेखर खराड़ी
तिथि-११/१२/२०२१

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111769489
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