माँ जीवन से संघर्ष आज कर रही है।
हिम्मतवान माँ आज बिखर रही है।
माँ मुश्किलों से लड़ी आज डर रही है।
माँ दुःख से हारी पल पल मर रही है।
माँ के जीवन में नित्य पतझर रही है।
माँ हमें संस्कार देने में कारगर रही है।
माँ जीवनभर बुरे कर्मों से पर रही है।
माँ नेकी पर चलनेवाली रहबर रही है।
माँ भलाई के लिए सदा तत्पर रही है।
माँ मेरे पूजनीयों में सबसे ऊपर रही है।
माँ की तस्वीर कविता में उभर रही है।
'अनीस' माँ की मायूसी अखर रही है।
-दिपेश कामडी अनीस