सौदागर
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हर चीज बिकती है बाजारों में
उसके सौदागर हैं हजारों में
कैसा है ये जग में दौर आया
इंसानियत बिक रही खरीदारों में।
विश्वास की पर्ते दर पर्ते उखड़ रही
अपनों से ही ज़िंदगी उजड़ रही
खामोश हो देख रहे सब तमाशा
बच्चियाँ माँ के आँचल में सिकुड़ रही।
कहते हैं देश तरक्की कर रहा
नए - नए क्षेत्रों में डग भर रहा
नैतिकता ,संस्कार बिक रहे सौदागरों
के हाथों
अपनों से ही अब व्यक्ति डर रहा ।
आभा दवे
मुंबई