तलवार जब गले तक आजाए तो शराफत कि जरूरत क्या है।
मुजरिम खुलेआम कुबूल रहे जुर्म अपना
अब गवाहो कि जरूरत क्या है।
अंधेरो के काम भी अब उजाले मे आ गए
फिर अंधेरो कि जरूरत क्या है।
खौफ तो जिंदगी के लिए था
बात जिंदगी पर आजाए तो फिर क्या है ।
जंग तो होंगी जरूर मगर
जबान है तो तलवारो कि जरूरत क्या है।
-Kazi Taufique