मैं वही किसान हूं...
चिलचिलाती धूप में रहने को मैं बदनाम हूं ,
जो तुम्हारे थाली का अन्न पैदा करें हां मैं वही किसान हूं
दुनिया टिकी है मुझ में पर फिर भी नहीं महान हूं
तुम सब को निवाला देने वाला हां मैं वही किसान हूं
आ गई है गर्मी फिर से
लेकिन मुझे आराम कहां
मेरी मेहनत वहीं पर दिखती
मुश्किलों का कोहराम जहां
धूप के इस तपन मैं
पसीने से मैं नहा रहा
खून सोचकर मैं इसे
खेत में अपने बहा रहा
जवाब दे जाती है सारी कोशिशें फिर भी मुश्किलों से अनजान हूं
दर्द अपना बया ना करता हां मैं वही किसान हूं.
देखो आज मैं बैंक गया था
कर्ज लेकर आया हूं
अपनी धरती मां के लिए मैं
धानी चुनर का सपना लाया हूं
पानी की फुहार के चलते
सारा खेत जोत लिया
आश और विश्वास का दामन
सारे तन पर पोत लिया
देश मेरा है कृषि प्रधान फिर भी मैं सुन्य समान हूं
किस्मत से ठगा हुआ सा हां मैं वही किसान हूं
खुला गगन अब हंस रहा मुझ पर
किसका अब विश्वास करूं
सावन भादो गया है ठग कर
किस पर अब मैं आस करूं
सारी कोशिशें नाकाम रही
अब कुछ ना हाथ में आया है
खुद की खुशी बस आखरी है
अब यही समझ में आया है
दिन दुनिया की अब खबर कहां सबसे मैं अनजान हूं
खुदखुशी में भी मुस्कुराता हुआ हां मैं वही किसान हूं