My Painful Poem..!!!
यह तरक्की के दौर का
जहाँ है मस्त-मलंग-मौला
यहाँ सिर्फ़ *अत्फ़* नहीं
मुनाफा सिफँ देखा जाता हैं
बिकाऊ-ओ-नापाक
बंदे फ़र्ज़ी इन्जेक्शनों से
सिक्का-ए-चलन से
ईमानदारी का सौदा कर
कोरोनावायरस से भी
भयानक किरदार अदा कर
लाशों के ढेर बढ़ा रहे हैं
जीते जी लोगों को मार रहे हैं
हुकूमत के हाकिम भी है
तो खामौश क्यों है पता नहीं
क्यों न एसे जल्लादों-हेंवानो
को फाँसी की रिवायतों पे लटकानें
का क़ानूनी प्रबंधन किया जाए
फ़ौरन इन्हें मौत के हवाले कर के
समाज को एक नए आयाम का
परिचय दे के अगले को रोका जाएँ
प्रभुजी का क़हर क्या कम न था
जो एसे खबीशों को सज़ा दी जाएँ
*अत्फ़ = कृपा, दया
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