My Rigid Customs 🛃 Poem ....!!!!
दुल्हन सी सजी थी, वह गहनों से लदी थी
लोगों की हलचल में, एकांत सी खड़ी थी ।
हल्की-सी मुस्कान चेहरे पर ऐसी खिली
मानों घबराहट की बूंद उसे कहीं न मिली ।।
चारों तरफ खुशहाली थी,
उसके मन में भी, नवजीवन की हरियाली थी ।
फिर भी थी हल्की सी हिचकिचाहट कहीं,
नवजीवन कैसा होगा ? खबर थी किसी को नहीं ।।
व्याकुल सी बैठी थी ऐसे,
परिणाम के इन्तज़ार में एक छात्र की प्रतिमा जैसे ।
मन में उसके थे प्रश्न अनेक,
उत्तर ना मिलते उसको कहीं से भी एक ।।
कुछ ही समय में जाना था उसको,
एक ऐसे कुटुम्ब में, जहां वह जानती थी न किसी को ।
यह ख्याल सताता रहा उसे तब तक,
डोली में बैठने का वक्त न आया जब तक ।।
न चाहकर भी हुआ कुछ ऐसा,
मोती से आंसुओ से भरा उसका गला ।
इसके आगे वह कुछ कह न सकी,
भीगी पलकों से बस विदा हो चली ।।
संग सखियों के खेलीं थीं होली
जिस आँगन में खेलीं आँख-मिचौली
पली पढ़ी बड़ी हूई बाबुल की छत्र-छाया में
उसी दहलीज़ को अलविदा कर चली डोली।