*💐🙏पिता श्री जी 🙏💐*
पिता ही तो स्वयं सदा आत्मरूप पुत्र हो आते हैं।
हम सबकी जीवन बगिया को वो ही सदा सजाते हैं।।
कभी निज के स्वप्नों को तो कभी स्वयं अपने को।
बच्चों में देखकर महकें जो वो जीत वाली हार हैं।।
प्रेरक हैं प्रेरणा भी हैं आचार औ संस्कार हैं।
पिता ही इस जीवन के वो एक सूत्रधार हैं।।
बच्चों का सुख ही जिनका जीवन अवकाश हैं।
यदि हैं माता धरती तो वो पिता ही आकाश हैं।।
टूटे न कभी विचलित हो जो वो ऐसे विश्वास हैं।
प्रतिमूर्ति नहीं कोई वो मेरे ईश्वर साकार हैं।।
_सनातनी_जितेंद्र मन_