गुमसुम सी थी यह निगाहें , पलकने से रुक पड़ी ,
जीने की कैसी अब बेमतलब सी आदत लगी !
उदासी बेवजह बन बैठी थी दोस्त ,
गूंजने लगी अब दिल की तार धीमी अतरंगी !
खयालों में उलझते सवालों से होते थे परेशान ,
अनजानी इस हवा ने रुख यह कैसी बदल दी ?
आंखों से बह गया वह दर्द , कई दिनों तक जो संजोया था ,
न जाने आज एहसास अलग है, मैं भी अपने आप में नई सी !!
-Urmi