Hindi Quote in Poem by Archana Rai

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कविता- चुभती आॅंखें
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घर से निकलते ही
चार कदम चलते ही
घूरने लगती हैं ...
न जाने कैसी- कैसी आँखें
हर मोड़ पर मिल जाती हैं परखतीं आॅंखें...
चील कौओं की तरह नौचनें बदन
खौफनाक आॅंखें....
शर्म लिहाज जरा- सा भी नहीं रखतीं...
कुछ ताड़ती आॅंखें
शरीर के हर उभार को नापतीं....
कुछ बेशर्म आॅंखें...
सिहर जाती हूंँ, मैं ....
देखकर उन नजरों की वासना
सुबह से शाम तक झेलती हूंँ
बस जलन अनगिनत आॅंखें की..
शाम ढले जब पहुॅंचती हूंँ, घर..
द्वार पर ही झटक कर गिरा देती हूंँ
सारी चिपकी हुई यह बेशर्म आॅंखें...

-Archana Rai

Hindi Poem by Archana Rai : 111680592
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