इस राख़ के ढेर में कहीं कोई चिंगारी बची है क्या,
सुलगता रहा है रात भर कोई उम्मीद बची है क्या
तोड़ दिया है ख़ुद को बस बिखरने की ही नौबत है
यादों में रह जाऊं ज़िंदा, कोई तस्वीर बची है क्या
लाख चीख़ लूँ ख़ुद पर मैं बस एक ख़ुद के ही लिए
मेरे सिवा मुझे समझाने की कोई तरक़ीब बची है क्या
छोड़ देता हूँ ये जो मैं कई दिनों तक लिखना ग़म को
सुधार लूँ आदत अपनी कोई उम्मीद ऐसी बची है क्या
नहीं चाहता कोई हो अपना जो साथ दे आख़िर तक
सफ़र कहाँ हो आख़िरी,थोड़ी सी ज़िन्दगी बची है क्या
इस राख़ के ढेर में कहीं कोई चिंगारी बची है क्या
-Broken_Feather