मुझे मौन से नहीं, मन से जाना जा सकता है...
शब्दों की चतुराई से नहीं, भावों की गहराई से पहचाना जा सकता है...
रहता हूं सभी के भीतर, जो महसूस किया करते हैं बस उन्हीं के साथ हूँ..
वहीं कहीं आसपास हूँ।
मैं मन हूँ उन अनगिनत प्रश्नों का भी...
परिचय जरूरी नहीं गर इतना जान लो..,प्रारब्ध हूँ बस ये मान लो🥺
-सनातनी_जितेंद्र मन