गाऊं मैं जो एक गज़ल, पर गज़लों में तुम मत पड़ना...
अश्क छलक जाए यूं, पर ग़ज़लों में विघ्न ना करना!
मैं अभिलाषी सी पुस्तक था,अंत समय में तुम मत पढ़ना...
अश्क छलक जाए यूं, पर गज़लों में विघ्न ना करना!
कहीं सुना तुम लिखते मुझपर, उन ग़ज़लों में हमको मृत घोषित करना!
अश्क छलक जाए यूं, पर ग़ज़लों में विघ्न ना करना!
तुम मुझपर! मैं ज़ख्मों पे! संदेशों का मिलना जुलना...
मैं तुमसे ग़जलों में मिलता, तुम हमको ज़ख्मों में मिलना...
चलो लिखूं कुछ प्रेम कहानी पर उसमें अब तुम मत पड़ना...
अश्क छलक जाए यूं, पर ग़ज़लों में विघ्न ना करना!
विरह लपटों मेरे आंगन में, पर उसमें भी तुम ही जलना...
लिख दूंगा गज़लों में अपनी, प्रेम दिवानी तुमको मरना...
छलकाना अपनी आंखों को, इस जन्म बस वियोग ही करना...
फिर कहीं जब जन्म लिया तो, पंछी ही तुमको बनना...
प्रेम प्यास जो रही अधूरी, पर खामोशी से तुमको जलना...
लिख रहा मैं गज़ल पुराने, पर उन गज़लों में अब तुमको मरना...
अश्क छलक जाए यूं, पर ग़ज़लों में विघ्न ना करना!
है एक गुज़ारिश आपसे मेरी, पहले जैसे अब मत तड़पाया करना!!
है एक गुज़ारिश ईश्वर से मेरी, जहां भी रखना बस खुश रखना...a⃟a⃟s⃟s⃟
-Aníruddhα "कौशल्य" "ֆ"