याद रखना रोईं थीं इस दिन हमारे शहीदों की बेवाएं...,
हर एक हिन्दुस्तानी के आंखों से लहू बहे थीं....।
फिर भी कुछ उच्छिष्ट लोग कुछ भी न कहे थे....,
हुई मांओं की कितनी सूनी गोद यहां पर थी....।
उठ गया था सर से हांथ कितने पिताओं का...,
तुम फरेबी इश्क़ के मेले में खो कर ये भूल न जाना...।
लगा था इस दिवस इक और मेला वीरों की चिताओं का... 💐
-सनातनी_जितेंद्र मन