हद हो गयी अब तो आरज़ू ए एतबार की।
क्या दास्ताँ बयाँ करूँ उस बेवफा यार की।
कहता था तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर दूं।
रोज़ बड़ी शिद्दत से लाता है वो हँसी उधार की।
उसकी हर अदा में शराफत की पेशगी देखी मैंने।
कभी मुस्कुराता अक्स तो कभी गुले बहार की।
हर चीज़ को करीने से लगाने का वो आदी है।
कभी ग़ज़रे तो कभी लाता खुश्बू ए गुलाब की।
रोज़ गुस्सा करने का अभिनय जो करते" अर्जुन"।
मुझे हँसा ही देता है कसम दे कर अपने प्यार की।
-Arjun Allahabadi