एक घड़ी खरीद कर हाथ में क्या बांध ली,
वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे।
सोचा था घर बना कर बैठूंगा सुकून से,
पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला।
खुश हूं और सबको खुश रखता हूं,
लापरवाह हूं फिर भी सबकी परवाह करता हूं।
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी कुछ अनमोल लोगों से रिश्ता रखता हूं।
✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏