देख कर चेहरा अपना शीशे में,
डर कर वह चिल्लाने लगी।
बार बार शीशे को शैतान बताने लगी।
सुन कर उसका करूण विलाप,
माता पिता निशब्द हुए,
किस प्रकार बेटी को बताएं
शीशा शैतान नहीं, न ही चेहरा
शैतान तो आज कल
मासुमियत का चोला पहने,
अपनों की भीड में बैठे हुए हैं।
अपनी नाकामी को छुपाने में
अपनी नामर्दी का सबूत दिखाते हैं।
और चेहरा किसी और का जलाते हैं।।
कहने को तो पुरुष नारी का रक्षक है
फिर क्यों बनता वो भक्षक है।
क्या पुरुष का चरित्र इतना कमजोर है
क्यों शैतान के बीच रहना हमारी मज़बूरी है।
अम्बिका झा 👏
-Ambika Jha