My Meaningful Poem...!!!
भलाई की रसाई वहाँ तक ले आई
कि बुराई की सारी ही हदें तोड़ आई
ख़्यालों की परवाज़ बुलंदी छू आई
न परवाह न तमन्ना की कोई परछाई
मक़ाम हासिल जो भी किए तन्हाई
उन्हें न फिर कभी कोई मंज़िल भाई
खुद ही खुद में हर वक़्त गुमशुदगी
न सरोकार जहाँ से न कोई रुसवाई
ग़ज़ब की कशिश हैं तेरी ए तनहाई
जिसने भी तेरी क़रीबी सोहबत पाईं
जहाँ से बैगाना हो के रब से दिल्लगी
अपनी हस्ती की सही मस्ती छू पाई
दर्द-ग़म-ख़ुशी-आंसू सब एक रंग
न अहंकार न तकरार की हद पाई
मलक से फ़लक तक एक ही रुबाई
सब हदों की ख़ाक छान मंज़िल पाई
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