My Motherhood Poem...!!!
यारों अपनी दुआओं में हर बच्चे की
फ़िक्र बेशक हर वक़्त वह करती है
इस जहाँ में एक माँ ही ख़ुदा की बनी
एसी शख़्सियत हैं जो रब से लड़ती है
तंग-दस्ती हो या हों दौलत की भरमार
बड़े चावों से बड़े नाज़ों से वह पालतीं है
इन्सानी उम्रदराज़ी के गुजरते हर पड़ाव
हर मसले-मसाईलको बखूबी निभातीं है
लकीरें बच्चोंके चेहरे की सजानेके लिए
एक माँ ही हाथों की लकीरें घस देती हैं
बच्चोंकी तीन वक़्तकी भूखकी फ़िक्र में
अनाज के दानों में ममत्व को भर देती हैं
सारे जहाँ की रेस्तराँओं मिल कर भी ना
ला सके चुटकी में वह स्वाद ले आतीं है
उतार-चढ़ावके दौरान फिसलते बंदे ग़र
बूढ़े माँ के पैर धो पी ले तो मुक्ति देती हैं
बेटे हो तो ठीक हे पर गर बेटियाँ हो तो
हर बेटी की तहज़ीब पर जान लुटा देती है
प्रभुजी की बनीं क़िस्मत की हर लकीर
अटल भले ही हो माँ की दुआ बदलती है
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