My Meaningful Poem..!!!
आदतें नहीं थी कभी भी किसी
को बेवजह बार बार देखने की
क़सूर तो पर आपकी ख़ूबसूरती
का था जिसे देख नज़र नहीं हटी
जिया जाए ना जाए पर जान हाथों
से दिदार की झलक ही ले कर जाए
नव माह की सिद्दतों के बाद बच्चा बन
जहाँमें वह लाए फिर वही चक्र दोहराएँ
बनाने वाले प्रभु ने भी क्या शेह बनाई
उससे शरु उसी पे कहानी ख़त्म हो जाए
माता जननी जनेता प्राण पोषक से वह
कितने किरदार जहाँ में निरंतर निभाएँ
फिर भी अबला आज्ञाकारी अज्ञानी
जैसे जहाँ के व्यंग्य-बाण सहतीं जाएँ
प्रभुजी की सबसे हसीन रचनात्मक
प्रतिकृति जहाँ जाए नस्ल दे के जाएँ
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