सिगरेट
हा,सीने मे जलन होती है,साँस भी फूलती है,अंदर कभी-कभी कोहरा हो ऐसा लगता है।ये होना तो लाज़मी हे,क्योंकि सिगरेट मेने खुद जलाई है।इस सिगरेट के धुँए से जो शबाहत बनती हे,में उसे महसूस कर जीता हू।में समजता हु सिगरेट और धुँए को,सिगरेट मेरी हे दर्द भी मेरा है,और इस दर्द मे में किसीको शामिल नही करता,ना करना चाहता हु,ये दर्द का जिम्मेवार भी में खुद हु और कोई नही।धुँए से बनती शबाहते मेरी सोच को पर देती हे,उसी सोच मे ही रहना मुजे अच्छा लगता है।
-विपुल बोरीसा-