वैसे तो तुम्हारी याद हर रोज़ आती है
पर कभी - कभी कमबख़्त बहुत ज़्यादा आती है
जब कभी प्यार का नाम आता है
इन होठों पर एक मुस्कान सी आ जाती है
उस वक्त तुम्हारी बहुत याद आती है।
चलते - चलते कभी दुपट्टा फंस जाए
वो गिरह बहुत कुछ कह जाती है
चुपके - चुपके तेरी बहुत याद आती है।
खिल - खिलाकर हंसते चेहरे पर
अचानक आंखों में नमी आ जाती है
उस लम्हे में तेरी बहुत याद आती है।
भीड़ भरी दुनिया से दूर जब कभी
तन्हा हो जाती हूं, सच कहती हूं उस तन्हाई में
तेरी बहुत याद आती है
मैं दूर हूं तुझसे, तू दूर है मुझसे
समझ नहीं आता ये कैसे कहूं तुमसे
तेरी याद इन आंखों को रुला जाती हैं
मुझे हर वक्त, हर पल तेरी याद आती है।
✍️ अनिता पाठक
09-12-2020
-अनुभूति अनिता पाठक