कभी अपने कभी पराये.......
जब अपने भी गैर समझें,
तो हम अपना किसें समझें?...
गैर भी कभीकभी अपनो का काम कर जाते है,
भरी महफील में,साथ निभाये चले जाते है,
अजनबी से गम बांटना,होता है आसान,
न गम फैलने का डर, न होता है नुकसान,
अपनो की बातो से होते है,हम खत्म,
कभी गैरो की झुठी तसल्ली से भर जाते है हर जखम,
अपनो की बीच,तमाशा बन जाता कभी खुद का,
लगता फिर सहारा अच्छा गैरो का.......
-प्रिया...