"सैंड-आर्ट"
"पिताजी;मुझे"सैंड-आर्ट-प्रतियोगिता"में पद्मश्री पुरस्कार मिला है."
"ये आर्ट-वार्ट कुछ नहीं;बल्कि समय;रेत की तरह,मुठी-से फिसल रहा है."
"माफ़ कीजिएगा पिताजी;कला की कोई सीमा नहीं होती.इसकी अपनी अलग-ही-दुनिया होती है.हर व्यक्ति कलाकार होता है.उसी प्रकार सैंड-आर्ट; कला की वह विधा है,जिसके तहत;बालू पर,बालू से ही,कलाकृतियां तैयार की जाती है.कलाकार अपने भावनाओं की अभिव्यक्ति,बालू पर आकृति बनाकर करते हैं और मैंने तो रेत को ही मुठी में बाँध लिया है.इसलिए मैंने भी गोल्डन-सैंड-आर्ट-इंस्टिट्यूट,से प्रशिक्षण लेकर,कला के क्षेत्र में अपने देश का नाम ऊँचा कराया है."
"हाँ बेटा,तुम बिलकुल सही कह रहे हो.कला का तो सम्मान और प्रशंसा ज़रूर करनी चाहिए.देश की ऐसी,अद्भुत-कलाओं को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए."