#मन
#आजाद
#परिंदे
कहीं पे है बंदिशें ,
कहीं पे है रंजिशे।
ऐ मेरे मन तू आजाद होकर भी,
तू आजाद कहां?
आसमान के परिंदे होकर भी,
जमीं पर चुगने की है हसरतें !
कहीं इच्छाओं में कैद है,
कहीं माया का जाल है,
कहीं संतोष का अकाल है ,
कहीं मजबुरियो की बेड़ीआ ।
ऐ मेरे मन तू आजाद होकर भी,
तू आजाद कहां?
महेक पारवानी