भाग्य रेखाओ मे तुम कही भी न थे
प्राण के पार लेकिन तुम्ही दीखते..!
सांस के युद्ध मे मन पराजित हुआ
याद की अब कोई राजधानी नही..!
प्रेम तो जन्म से ही प्रणयहीन है
बात लेकिन कभी हमने मानी नही..!
हर नए युग तुम्हारी प्रतीक्षा रही
हर घडी हर समय से अधिक बीतते..!
अमृत....