आज भी याद है
आज भी याद है बचपन की हमको हर
शरारत
स्कूल के समय रोने की बड़ी थी मेरी
आदत।
स्कूल जाने से मुझको लगता था इतना
डर
होते ही टाइम छोड़ कर भाग जाता था
घर।
घर का था मैं बहुत दुलारा था सबकी आंखों
का तारा
लेकिन गलती हो जाए तो नहीं नहीं होता
कोई सहारा।
खेलकूद मस्ती मौज में रहता बिल्कुल
मस्त
मेरी उल्टी-सीधी हरकत से घर वाले रहते थे
त्रस्त।
प्रतिदिन झगड़ा मार लड़ाई हो जाती थी
बेशक मेरी
लेकिन रोते घर आता था सब बोलते नहीं
गलती तेरी।
सरकारी स्कूल में दाखिला हुआ पढ़ने में हम कमजोर
घर वालों के पैसे चुराने में था मै एक नंबर
चोर।
हो जाऊं मैं तेज पढ़ाई में इसकी कोशिश थी
पूरी
बहुत दिनों तक ख्वाहिश मेरी बनकर रह गई अधूरी।
फिर हमने खेलने दौड़ने मैं थोड़ी दिलचस्पी दिखायी
ना जाने यह हुनर सबको कब पड़ गया मेरा दिखाई।
थोड़ी जब अाई समझदारी मौज मस्ती को किया विदा
घर की अपनी देखकर हालत फिर पढ़ाई में मन लगा।
सब का आशीर्वाद मिला सबको था मुझ पर भरोसा
मैं कुछ बन कर दिखलाऊ ऐसी सब ने कर ली आशा
निकल पड़े हम छोटी उम्र में ही अपनी राहों
पर
हुई कुछ ऐसी करामात की छा गए हम निगाहों पर।
मेरा भी एक सपना था कि करूंगा कुछ अलग मैं काम
गांव में इकलौते फौजी होने का मिला मुझे
इनाम।
जिस सम्मान की चेष्टा थी उसको मैंने हासिल किया
दशकों से नहीं था दर्ज वहां नाम दाखिल
किया।
छाई रहती है खुशियां हरदम घर परिवार में
हम भी खुश रहते हैं हरदम सेना के परिवार में।
जय हिंद 🇮🇳🇮🇳
vp army ⚔️🇮🇳