दर- ब- दर भटकते- भटकते...!
पैरों की एड़ियां जल चुकी थी...!!
मंज़िल- ए- ज़िंदगी की तलाश में...!
मेरी राहें, तेरी और चल चुकी थी...!!
चलते- चलते यूँ ही फ़िर...!
कुछ ख़्यालों में टहल चुकी थी...!!
आरज़ू- ए- गुफ़्तगू को...!
मेरे लफ्ज़ों में हो हलचल चुकी थी...!!
ना चुपी है ना ख़ामोशी...!
अजी उलझन कैसी ये पल चुकी थी...!!
मेरी आँखे भी बोलती हैं अब तो...!
धड़कने तो दिल से दहल चुकी थी...!!
नाज़ुक से इस दौर में...!
नासाज़ तबियत बहल चुकी थी...!!
इक तुमसे मिलने को...!
मेरी पायलियाँ भी देखो मचल चुकी थी...!!
शोर- ए- दरिया- ए- दिल में...!
साँसे भी लहरों सी चल चुकी थी...!!
बड़ी, बड़ी ही मुस्किल से थामा है सबको...!
बस कहने को तो मैं बदल चुकी थी...!!
ना कोई उम्मीद, ना कोई आश...!
आशा की वो मोमबत्ती पिघल चुकी थी...!!
हकीम नब्ज़ तलाशता रह गया...!
मेरी रूह तेरी तलाश में निकल चुकी थी...!!
~माहिरा चौधरी ✍️