आखिर कबतक
कुछ अरसा तो गुज़रा,मगर कोरोना नहीं गया,राह देखे आखिर कब तक,
थक चुके हैं दुनियावाले ,आ गई ये वबा सताने,संभलें आखिर कब तक,
कोई काम ढंग से होता नहीं,इन्सान फिक्र में सोता नहीं,ये आखिर कब तक,
ज़िन्दगी बदल सी गई है,रोनक बस ढलसी गई है,बीना सुकून आलम आखिर कभतक,
ख़बरें बुरी आती है, दिल को खूब सताती है,मरते हैं लोग रोज,ये आखिर कबतक,
कारोबार हुआ ठप,है राहें बीना मंजिल,चलें भी तो कहां, ये आखिर कबतक
-Chandni Desai