बात उन दिनो की है ये ज़िन्दगी
वो ज़िन्दगी फिर मिल जाती हम हस्ते फिर खेलते फिर खूबसूरत लम्हे और सबसे हसीन लम्हा मेरी दादी।। बाबा गणित के अध्यापक थे जैसी गणित कठिन थी वैसे बाबा बाबा भी शक्त थे । पर दादी हमारी हमारे बच्चपन की सबसे अच्छी मित्र थी जब बाबा हमको मरते तो दादी हमको बच्चने आ जाती थीं हरपल बाबा के सासन में रहना पड़ता था
बाबा को बाहर के बने समान तिनक पसंद नी था। जैसे हाईकोर्ट से बिल पास हुआ हो वैसे बाबा का आदेश रहता था कि बाहर का समान नहीं खाना था
वहीं दूसरी तरफ हमारा और दादी का खूबसूरत सा लगाव था वो अपनापन प्यार था ।
पर आज कल की दुनिया में लोग जहां बुजुर्गो को देख कर दूर भागते ह वहीं हमारी दादी मित्रता का उपहार थी
हम जब भी बाजार जाते तो बाबा की चोरी कुल्फी ,चाट खरीद लेते थे और हम लोग जो भी कहते बिना दादी को खिलाए नहीं खाते थे
बाबा गेटे के पास वाले कमरे में हमेशा बैठे रहते और अपने गणितमाए सागर में डूबे रहते थे और दादी दुसरे मंजिले पर अपने कमरे में रामायण में लीन रहती थी बाबा के समने से तो हम कुल्फी ले कर जा नहीं सकते थे फिर हम लोग बगल की छत से कूद कर दादी के पास जा कर साथ बैठ कर सब खाते थे ।।
उसके बदले हमारी दादी का उपहार बी अनोखा अमूल रहता था
ऐ ज़िन्दगी जब मै बीमार होती थी हमारे पारिवारिक चिकत्सक हमलोगो को दावा तो देते थे साथ में हमारे पेट पर ताला जड़ देते थे । की बस वही दाल , किचरी, जिसको देखने से ही हम और बीमार महसूस करते थे । बाबा तो बस हमारे पास ही रहते थे जब तक हम तिक नी हो जाते थे रात में जब सब सो जाते थे तो हमारी दादी चुपके से अपने अचल में मेरी पसंद की चीजे छुपा कर ले आती थी 🙃🙂 और हमको खिलाती थी पर सुबह जब तबीयत ठीक नहीं मिले तो बाबा दादी को डाते की आप ही कुछ खिलाई होगी मेरी दादी हष कर चली जाया करती थी
आज फिर बीमार हो गई हूं फिर दादी आ जाती बुखार भी ज़िद पर ह फिर दादी कि लोरी फिर दादी कुछ खिला दे में ठीक हो जाऊ
फिर लौटा दे न वो हस्ता मेरा बच्चपन अये ज़िन्दगी😔😔