क्यों सजती हो, क्यों हो संवरती, तुम बेटी की जात हो !
ये कैसे मुमकिन है लाडो, तुम्हें भी जज्बात हो ;
तुम में भी जज्बात हो!!
क्यों पढ़ती हो, क्यों बढ़ती हो, क्यों सुलझे खयालात हो !
यह कैसे मुमकिन है लाडो तेरी कोई बिसात हो;
तेरे भी कोई बिसात हो!!
क्यों हंसती हो, क्यों मुस्काती, रोना है तकदीर तेरी!
यहां पे हो या वहां पे लाडो, कोई ना समझे पीर तेरी;
कोई न समझे पीर तेरी!!