एक तुम्हें चाहने के लिए और क्या क्या चाहा मैंने यें मुझे भी ना थी खबर ...
सबसे पहले उस घर को चाहा मैंने जहाँ पड़े थे कदम पहले,
फिर उस घर के हर रिश्ते को चाहा मैंने जो था तुमसे जुडा ,
फिर तुमसे जुड़ी हर चीज को चाहा मैंने जों तुम्हारी पहचान थीं ,
अब जब सोचती हूँ खुद को भी थोड़ा चाह लूँ ,
खुद से दो - चार बातें कर लूँ ,
तो पता चला मेरा मुझमें कुछ बचा नही।
एक तुम्हें चाहने के लिए और क्या क्या चाहा मैंने यें मुझें भी ना थी खबर ।
-Vaishnav