Hindi Quote in Poem by Seema Shivhare suman

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*ईमेल पढ़ो मेघराज*

मेघराज ईमेल पढ़ें बिन
सिर्फ बरसने पर चढ़े हुए।
शर्म करो निर्दय हृदया तुम
बर्बादी पर क्यों अड़े हुए ।।

प्रिय! तुम मेरी सुनो प्रार्थना
भेज रही पीड़ा की पाती।
डूबे चूल्हे जले न पावक
जले है दरिद्रों की छाती।
सिर पर किसी के छतें बची न
बस भूंखे - नंगे पड़े हुए ।
शर्म करो निर्दय हृदया तुम
बर्बादी पर क्यों अड़े हुए ।।

ऊंचे महल अटारी वाले
सारे ही लुफ्त उठाते हैं।
दो रोटी को तरसें बेबस
गरीब ही मारे जाते हैं ।
तालाबों में लेकर जोख़िम
सिराने गजानन खड़े हुए ।
शर्म करो निर्दय हृदया तुम
बर्बादी पर क्यों अड़े हुए ।।

टूटे पुल भी तुम्हें दिखें न
आंखों पर क्या पट्टी बांधी ।
गणित लगाना आता तुम को
जन जीवन में आई आंधी ।
देवराज का देखो गुस्सा
क्या इंद्राणी से लड़े हुए ।
शर्म करो निर्दय हृदया तुम
बर्बादी पर क्यों अड़े हुए ।।

ताल -मेल का मतलब जानो
कहीं बाढ़ें , कहीं सूखा है ।
क्यों इतना तुम कहर ढा रहे
व्यवहार क्यों अबकि रूखा है।
*अति का भला न बरसना* सुनो
मेघराज *अति की भली न धूप* ‌
रखना होगा बदरा तुमको
हर समय इक जैसा ही रूप

मानो भी तुम टूट गए सब
प्रतिमान पुराने गढ़े हुए ।
शर्म करो निर्दय हृदया तुम
बर्बादी पर क्यों अड़े हुए ।।


*सीमा शिवहरे सुमन*

Hindi Poem by Seema Shivhare suman : 111556569
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