जीवन की तमाम मुश्किलात हालातों से जूझते हुए कवि अपनी जिंदगी को खुशनुमा तरीके से कैसे गुजार रहा है, ये कविता कवि के उस नजरिये को दिखाती है।
ख्वाहिशों की बात में इतना सा फन रखा ,
जो हो सके ना पूरी उनका दमन रखा।
जरूरतों की आग ये जला भी दे ना मुझको,
तपन बढ़ी थी अक्सर बाहोश पर बदन रखा।
हादसे जो घट गए थे रोना क्या धोना क्या,
आ गई थीं मुश्किलें जो उनको दफ़न रखा।
हसरतों जरूरतों के दरम्यान थी जिन्दगी ,
इस पे लगाम थोड़ा उस पे कफन रखा।
मुसीबतों का क्या था, थी रुबरु पर बेअसर,
थी सोंच में रवानी जज्बात में अगन रखा।
रूआब नूर-ए-रूह में कसर रहा ना बाकी ,
थीं जिनसे भी नफरतें इतनी भी अमन रखा।
खुशबुओं की राह में थी फूलों की जरुरत ,
काँटों से ना थी दुश्मनी उनको जतन रखा।
जिंदगी की फ़िक्र क्या मौज में कटती गई ,
बुढ़ापे की राह थी पर जिन्दा चमन रखा।