हालाकि चालाकी मुझे नहीं आती ।
मेरी मासूमियत मुझसे नहीं जाती।
मेरी जिंदगी बार बार धोखे खाती।
छोड़ जाते सब पल भर के मुलाकाती।
ज़िन्दगी है ही ऐसी कभी हँसाती-रुलाती।
सुख-दुःख है जीवन की अक्षय थाती।
हँसता रोता मेरा मन बालक भांति।
टूट ही जाता दिल खिलौना की भांति।
टूटे खिलौनों पर क्यों पीटना छाती?
समझ न पाया जो ज़िन्दगी समझाती।
- दीपेश कामडी 'अनीस'