# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .बहुविध "
# कविता ***
बहुविध समझाया ,पर उसके समझ न आया ।
दुष्ट व्यक्ति से बचाया ,पर उससे अलग न रह पाया ।।
सरल स्वभाव से दोस्ती ,करने को उसे समझाया ।
पर उसके दिल ने ,यह नहीं स्वीकार किया ।।
अपने को गर्त में ,खुद ही गिराया ।
पर किसी की बात ,कभी समझ न पाया ।।
इंसान अपने कर्मो से ,ही सुख दुःख पाया ।
पर कभी सही राह पर ,चल नहीं पाया ।।
रावण की तरह ,अकड कर चल पाया ।
अपने आप को ,विनाश से नहीं बचा पाया ।।
मंदोदरी ने बहुत समझाया ,पर सही राह चुन न पाया ।
खुद ही जीवन बिगाडा ,पर राम के चरण में नहीं झुक पाया ।।
अपने कर्म का फल पाया ,बलशाली होकर मौत को अपनाया ।
बुरी संगति का फल पाया ,जीवन बेकार गंवाया ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।