मै जितनी बार लिखता हूँ,
पूछता हूँ कि मै लिखता क्यों हूँ?
इसका कभी वाजिब उत्तर नही मिला,
पर फिर मन कहता है,
शायद इसलिए कि कभी कोई ऐसा मिला नही,
जिससे मन की बात कर सके,
ये अकेलेपन के कारण है,
एक कोरे दिल के कारण है,
वैसे ही जैसे रात को उठ कर जब कॉफी बनाता हूँ,
वो भी दो बनाता हूँ,
जिससे उसे देख कर अकेलापन ना लगे,
जितनी बार मै लिखता हूँ,
मै अपने आप को अपने पास पाता हूँ,
और मेरा अकेलापन जाता रहता है।
-Krishnakatyayan